इस भरी दुनीया में मैंने नज़रें मिलाई भी
नही किसी से। ( सिवा तेरे सिवा तेरे)
टपकते हैं विरह के आँसु इन नयनों से
भीगोते हैं चुनरी मेरी ,यह बात मैंने किसी को
बताई भी नहीं। (सिवा तेरे सिवा तेरे)
भोर होते ही जब पक्षी चहचहाते हैं
निद्रा से उठती हुँ तो कहीं
देखती भी नहीं। (सिवा तेरे सिवा तेरे)
आँख जब से मिलाई है तुम से जो सकुन
पाया है मन ने यह राज किसी को
बताया भी वही । (सिवा तेरे सिवा तेरे)
------मधुर-------