Monday, July 6, 2015

नई बहार बन कर



आये हो मेरी जिंदगी मे तुम
एक नई बहार बन कर
ख़यालों मे खोई रहती हुँ
जमी पर पेर टिकते नही
आँखे बंद करती हुँ तो लगता है
हवा मै उड़ रही हुँ
एक नई बहार --------------

सूनी थी एक पतझड़ के बृक्षों की तरह
फूलो से भर गई हुँ ,
खशबु बिखेर रही हुँ
एक नई बहार----------------

उलझी थी दुनीया की भीड़ मे
अब अपने में खो गई हुँ
कभी रोती हुँ कभी हँसती हुँ
एक नई बहार ----------------

प्यासी थी सदियों से
समुंदर सा बन गई हुँ
लहरों से खेल रही हुँ
एक नई बहार ---------------
आये हो मेरी जिदंगी मे तुम
एक नई बहार -----------------

--------- मधुर-------------

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