कुछ तो तरस करो ,प्रभु कुछ तो तरस करो
सजते करते हुए दिन से हुई रात और रात से दिन
झोली फैलाए बैठी हुँ उम्मीद लगाए बैठी हुँ ।
कुछ तो तरस करो..............
नहीं देखा जाता लाचार डाक्टरों और नर्सों का हाल
जो अपनी जान पर खेल कर मरीज़ों को जांच रहे हैं।
कुछ तो तरस करो..............
नहीं देखे जाते वह लाशों के भरे बर्फ़ के ट्रक
जो बिना कफ़न ही दफ़नाये जा रहे हैं।
कुछ तो तरस करो.............
क्या भूल हुई हम सब से ,क्युं इतना ख़फ़ा हो गए
मौत के डर से है काँप रही सृष्टि सारी बेबस सब इन्सान हो गए।
कुछ तो तरस करो............
इस सृष्टि के मालिक तुम हो , कुछ कह भी नहीं सकते
मगर इनसानियत के नाते यह सब सह भी नहीं सकते ।
कुछ तो तरस करो..........
फ़रियाद करती है यह नाचीज़ ‘मधुर ‘
इस सृष्टि को शान्ति का वरदान बख़्शो ।