Tuesday, October 25, 2016
मिलन या विरह
आप को सदगुरु कहुं या फ़रिश्ता
आप ने फीकी मुसकान को किलकारीयों मे बदल दिया
मरती थी पल पल ,जीने का गुर बता दिया ।
डरती थी हवा के झोंकों से ,आँधियों से टकराना सीखा दिया ।
लड़खड़ाते थे पैर जमी पर,आसमान मे उड़ना सीखा दिया ।
थी एक सूखे हुये फूल की पंखुड़ी,महकता हुया गुलाब बना दिया ।
बैठी थी झोली फैलाये , प्यार की एक बूँद के लिये
आप ने तो दामन ही भर दिया ।
टपकते हैं आँसु रुकाये रुकते नहीं
इसे विरहा कहुं या मिलन ।
-----मधुर---------
Tuesday, October 18, 2016
फूल
इन फूलों को तो देखो
क्या रंग है ,क्या खशबु है, क्या बनावट है
पूरी कायानात की तस्वीर है
यह बोलते नही फिर भी सब कुछ कह देते हैं
एक बेजान इन्सान मे जान भर देते हैं ।
इन की ओर नज़र लगा कर तो देखो
इन को प्यार से सलाह कर तो देखो
इन को शिवलिंग पर चढ़ा कर तो देखो
फिर तुम भी इन जैसे हो जाओगे ।
चारों तरफ़ ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ होंगी
उनकी महक में खो जाओगे
इस सृष्टि का क़र्ज़ अदा कर दोगे
ब्रह्मा विष्णु और महेशमे मिल जाओगे।
------- मधुर---------
असीम प्यार
जब याद तेरी मुझे आती है
आँखो मे जल भर आता है
दिल मे कसक सी होती है
मन चोरी चोरी रोता है ।
लाख छिपाने से न छुपता
यह नदीयाँ बन कर बहता है।
मिलने की इच्छा से तेरी
दिन रात बसेरा करती हुँ
जब मिलने की घड़ी आती है
सुध बुध ही खो देती हुँ
फिर भर कर नीर मैं आँखो मे
सिसकी सी भरती रहती हुँ ।
जब याद तेरी------
सब ऋीिषयों का यह कहना है
तुम इस जल थल मे रहते हो
बरसातों में और जाड़ों में
बूँदों को तकती रहती हुँ
मिलने की-------
माया का जो जाल बिछाया है
उस मे ही जकड़ी रहती हुँ
कांटु ये बंधन जितने भी
उतनी ही कसती जाती हुँ
मिलने की --------
जब घिर जाती हुँ तूफ़ानों मे
तेरी गूंजन मे खो जाती हुँ
मिलने की------
-------- मधुर-------
Saturday, October 15, 2016
दो नशीली ऑंखें
दो नशीली आँखे रहती है हरदम दिल मे मेरे
कभी हंसतीं है खिलखिला के एक नन्हें बालक की तरह
फिर बन्द हो जाती हैं हँसते हँसते वह दो आँखें
इंतज़ार मे रहती हूँ कब फिर से खुलेगी वह दो आँखे
जब खुलती हैं तो ,पानी से भर जाती हैं वह आँखे
चुपचाप ,गहरी बहुत गहरी इतनी गहरी कि
छिपते हुये सुरज की लाली
खो जाती हूं उस गहरेपन मे
फिर से बंद हो जाती हैं वह आँखे ।
तड़पा देती हैं मुझ को फिर से
कब खुलेंगी वह दो नशीली आँखे ।
कभी चुपके से तीर चलाती हैं वह आँखे
घायल कर देती हैं वह दो आँखे ,
कभी घूरती हैं मुझको को वह आँखे
डर जाती हुँ क्या कर डाला
फिर कब हँसेंगीं वह आँखे ।
कभी हठखेलीयां करती हुई
मुस्कुराती हैं वह आँखे ,
हर दम दिल मे बसेरा करती हैं वह दो आँखें
दो नशीली आँखे रहती हैं हरदम दिल मे मेरे
मधुर !,,,,,,,
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