Saturday, October 15, 2016

दो नशीली ऑंखें





दो नशीली आँखे रहती है हरदम दिल मे मेरे 
कभी हंसतीं है खिलखिला  के एक नन्हें बालक की तरह
फिर बन्द हो जाती हैं हँसते हँसते वह दो आँखें 
इंतज़ार  मे रहती हूँ कब फिर से खुलेगी वह दो आँखे 
जब खुलती हैं तो ,पानी से भर जाती हैं वह आँखे 
चुपचाप ,गहरी बहुत गहरी इतनी गहरी कि
छिपते हुये सुरज की लाली 
खो जाती हूं उस  गहरेपन मे
फिर से बंद हो जाती हैं वह आँखे ।
तड़पा देती हैं मुझ को फिर से 
कब खुलेंगी वह दो नशीली आँखे ।
कभी चुपके से तीर चलाती हैं वह आँखे 
घायल कर देती हैं वह दो आँखे ,
कभी घूरती हैं मुझको  को वह आँखे 
डर जाती हुँ क्या कर डाला 
फिर कब हँसेंगीं वह आँखे ।
कभी हठखेलीयां करती हुई
मुस्कुराती हैं वह आँखे ,
हर दम दिल मे बसेरा करती हैं वह दो आँखें 
दो नशीली आँखे रहती हैं हरदम दिल मे मेरे 
             मधुर !,,,,,,,

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