दो नशीली आँखे रहती है हरदम दिल मे मेरे
कभी हंसतीं है खिलखिला के एक नन्हें बालक की तरह
फिर बन्द हो जाती हैं हँसते हँसते वह दो आँखें
इंतज़ार मे रहती हूँ कब फिर से खुलेगी वह दो आँखे
जब खुलती हैं तो ,पानी से भर जाती हैं वह आँखे
चुपचाप ,गहरी बहुत गहरी इतनी गहरी कि
छिपते हुये सुरज की लाली
खो जाती हूं उस गहरेपन मे
फिर से बंद हो जाती हैं वह आँखे ।
तड़पा देती हैं मुझ को फिर से
कब खुलेंगी वह दो नशीली आँखे ।
कभी चुपके से तीर चलाती हैं वह आँखे
घायल कर देती हैं वह दो आँखे ,
कभी घूरती हैं मुझको को वह आँखे
डर जाती हुँ क्या कर डाला
फिर कब हँसेंगीं वह आँखे ।
कभी हठखेलीयां करती हुई
मुस्कुराती हैं वह आँखे ,
हर दम दिल मे बसेरा करती हैं वह दो आँखें
दो नशीली आँखे रहती हैं हरदम दिल मे मेरे
मधुर !,,,,,,,
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