Thursday, June 25, 2015

गुड़िया


 एक नन्ही सी जान मिट्टी का शरीर धारन कर जब
इस संसार मे आई तो एक बद क़िस्मत गुड़िया कहलाई,
ज़माने ने ठंडी अांखें भरी ,उस बाप के प्यार से वचिंत रही 
जो जन्म लेने से छह महीने पहिले ही अलविदा कह गया
यह तो विधाता की विधी थी,मगर बेटी को मुजरिम का नाम मिल गया।

एक फुफेरी बहिन ने नाम दिया "मधुर " तो मधुर लता कहलाई
क्या जानु , कौन हुँ  कहाँ से आई हुँ और  कियुं आई हूँ ,
अधूरे प्यार से पलती हुई  हमेशा बेचारी कहलाई
भावनायों से झुजती हुई जवानी की दहलीज़ पर आई,

बहुत से सवाल उठे जिनको सुलझा न पाई
उलझे हुये सवालों की गुथी और भी उलझती गई
देख कर लोगों को हँसते हुये, हँसना चाहती थी 
 वह गुड़िया मगर कभी खुल कर हंस ना पाई।

शादी हुई परिवार से दूर हुई, विदेशी विरानीओ मे सकपका सी गई
ढूँढती थी एक रोशनी की किरण,और भी अंधेरों मे खो गई
प्रश्नों की गुत्थी और भी उलझ गई ,सूलझा न पाई
सोच कर इसी का नाम जीवन है, गुमसुम सी रही।

जन्म लो ,पढ़ाई करो, शादी करो, फिर बच्चे पैदा करो
उनका पालन पोशन करो, समय आने पर जहाँ से चले जाओ,
क्या यही जिंदगी है?
इस जिदंगी का मक़सद जानना चाहती थी पर पा न सकी।

अचानक एक दिन एक फ़रिश्ता उस की जिदंगी मे अाया
आशायों का सवेरा हुया, जिदंगी मे एक नया मोड़ आया,
अज्ञान के अंधेरों से निकल कर रोशनी मे आ गई
प्रश्नों की उलझी हुई गुथी धीरे धीरे सुलझने लगी।

ख़ुशीया जो ढुंडती थी उम्र भर ,पल भर ही में पा गई
आँखो से नीर बहने लगे ,  सुधबूध सी खो गई
उनके चरणों मे गिर पड़ी, वह हमेशा के लिये उनकी हो गई
वह सपने जो संजोये थे पूरे होने लगे।

जिंदगी का राज मिल गया
जीने का मक़सद मिल गया
वह अपने मे पूर्ण हो गई
एक बदकिस्मत गुड़िया ख़ुशक़िस्मत हो गई।
-----मधुर--------2005

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