मैं दिल से पूछती हुँ क्या तुम साथ न दोगे
मुझे ज़रूरत है तुम्हारी दोस्ती की क्या तुम निभा न दोगे।
मैंने देखी दुनीया सारी न मिला हम सफ़र तुम सा
इस मन मोजी दुनीया मै सब मनमोजी ही पाए
न मिला हमसाया तुमसा ।
चाहती हुँ बैठे हों किसी विराने मे
तुम मै और मेरा साया
तीनों ही इतने मस्त हों न हो वहां कोई पराया ।
ऐ दिल अगर तुम दगा भी दोगे
मैं फिर भी ग़म ना लूँगी
शमशान की माटी से दोस्ती कर लूँगी
उसी से बसर तमाम ज़िंदगी कर लूँगी ।
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