Thursday, June 18, 2015

ऐ दिल

















मैं दिल से पूछती  हुँ क्या तुम साथ न दोगे
मुझे ज़रूरत है तुम्हारी दोस्ती की क्या तुम निभा न दोगे।

मैंने देखी दुनीया सारी न मिला हम सफ़र तुम सा
इस मन मोजी दुनीया मै सब मनमोजी ही पाए 
न मिला हमसाया तुमसा ।

चाहती हुँ बैठे हों किसी विराने  मे
तुम मै और मेरा साया
तीनों ही इतने मस्त हों न हो वहां कोई पराया ।

ऐ दिल अगर तुम दगा  भी दोगे
मैं फिर भी ग़म ना लूँगी 
शमशान की माटी से दोस्ती कर लूँगी 
उसी से बसर  तमाम ज़िंदगी कर लूँगी ।


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