Sunday, November 27, 2016

एक ही सत्य





सब के दिलों मे तू धड़कता है
सब की रगों मे तू रेंगता है 
हर एक की साँस मे तू बसता है 
बन कर लाल ख़ून तू बहता है 
हर रगं मे तू रहता है।
फिर यह रंगो की लड़ाई क्यों 
सभी ढुंढते है तुझको कयों
सभी के साथ तो तू रहता है।
तेरे नाम पर लड़ते हे सभी कयों
एक ही "ऊँ" मै तु समाया है
आमीन,एकम कार,अल्लाह।
हिन्दु मुस्लिम सिख ईसाइ
यह बिखरे नाम कयों
सब के दिलो -----
सब की रगों-------
इन फूलों की महक मे तू महकता है 
इन पौधों व वृक्षों मे तू झूमता है 
इन बारीश की बुंदो मे तू बरसता है
सूरज की किरणों मे तू चमकता है 
चंदा की चाँदनी मे तू बिखरता  है 
यही है एक सत्य कि 
तू एक ही सच्चिदानंद है
फिर यह लड़ाई झगड़े कयों
यह गोला बारूद कयों
यह बिखरी लाशें कयों
तेरे नाम पर यह विवाद कयों
सभी के दिलों मे तो तू धड़कता है 
सभी की रगों मे तो तू रेंगता है 
-----मधुर------







अंहकार




अंहकार इन्सान को पागल बना देता है
बस तना देता है एक फ़ुटबॉल की तरह
जो ठोकर खाती है इधर से उधर 
और उधर से इधर
वह इतना खो जाती है दुनिया के खेल में
कि लोग हसंते हैं वाह वाह करते है 
मगर वह पिटती ही रहती है ।
जब किसी एक बड़े पंच से कट 
जाती है ,सब हवा निकल जाती है 
अपना रूप मिटा लेती है ।
और इन खिलाड़ियों से दूर 
एक कोने मे सदा के लिये शांत हो जाती है।
यह हालत भी हर इन्सान की है
अंहकार निकल जाने से 
वह भी शान्ती का पात्र है जाता है।
----मधुर--------

सद्गुरू



जिस ने नवाजी है यह जिंदगी
उस को तो कभी देखा नही 
जिस ने सवारी है यह जिंदगी 
उस की करती हुँ दिन रात बंदगी 
वह जाने या ना जाने उस की परवाह नही 
जुड़ी है हर साँस उनकी सासों के साथ
उनकी सांसें भी धड़कती होगी मेरी धड़कनो के साथ
-----मधुर--------

Wednesday, November 23, 2016

पुकार




हवा का झोंका तु ही तुं
सागर की लहरें तु ही तुं
चोटी का शिखर ------
पाताल की जड़ ------
माँ की ममता -------
बच्चों की किलकारी ----
भक्त की पुकार ----
चाँद की चाँदनी -----
सूरज की किरणें-----
तारों का टिम टिम करना---
अविष्कारो की खोज -----
गारीब की भूख---
अमीर का इठलाना----
आसमान की नीली छतरी ----
सागर की गहराई-----
धरती की हरीवाल चादर----
अंबर पर उड़ते पक्षी----
धरा पर रेंगता कीड़ा ---
जाड़ों की सर्दी----
गरमी की लुं-----
पतझड के सूखे पत्ते ---
फूलों भरी फुलवारी ----
फिर कियुं छुपे हो 
सब के अंदर
बाहर आयो ना 
जलवा दिखाये ना
हर प्राणी को 
अपने रंग मे रंग जायो ना 
जो जकड़े हैं माया के जाल मे
उन्हें आज़ाद कराये ना 
----मधुर-----




Tuesday, November 22, 2016

बिजली का कारंट

आँधी तूफ़ान बिजली का कड़कना 
बादलों का गरजना पानी का बरसना 
बृक्षो का टूट कर धरा पर गिरना
एक भंयकर नज़ारा ।
मगर एक बिजली का वल्लभ
टिमटिमा रहा है खम्भे के उपर
फैला रहा है रोशनी बेधड़क हो कर
बह एक बिजली की तार से जुड़ा है
वही तार उसे कारंट दे रही है।
हमें भी जुड़ना है उसी तार से 
जिस से हमें कारंट मिल रहा है
फिर हमें भी काहे  का डर
तुफानो से लड़ सकते है 
आँधियों से टकरा सकते हैं
हो कर निडर ख़ुशहाली से जी सकते हैं
--------मधुर--------