अकेली
अकेली चल रही थी
क़ाफ़िले से जुड़ गई हुँ,
भागती थी जिन्ह रिश्ते नातों से
उन्हीं की माला का एक मोती बन गई हुँ,
यह तो मै नही जानती यह ठीक है या ग़लत,
वही जाने जिस के हाथ मे है
मेरी ज़िंदगी की संलामत
मुझे फ़िकर काहे का!!!!!!!!
I am just breathing!!!!!!!
-----मधुर-----
No comments:
Post a Comment