Saturday, May 9, 2015

एक पौदे की दासता


एक माली ने बीज लगाया 
फिर छोड़ गया दुनीया के सहारे
समय बीता। 

बह बीज धरती से बाहर आया
थोड़ा बड़ा हुया 
मगर पनप ना पाया ,रौदां गया
पैरों तले,
एक दिन बारीश की बूँदों ने फिर से
जीवत कर दिया उसे
झुमका रहा हवा के झोंकों से पिटता रहा
मगर उदास अपने माली को याद करता रहा
फिर थोड़ा और बड़ा हुया सँभला,
समया पा कर उस पर कुछ कलियाँ आईं,
मगर खिल न पाईं,
एक दिन अचानक एक नये माली ने
उसे पहचाना,सराहा और प्यार से
सींचने लगा,
पौदे मे ख़ुशी की लहर आ गई
हवायों के संग झूमने लगा
अपनी पहचान पा गया
बंद कलियाँ खिलीं और फूल बन गई
अपनी खशबु सारी कायनात मे बिखरने लगा।
--------मधुर----------

No comments:

Post a Comment