Thursday, April 30, 2015

मिलने की चाह
























दिल में है दर्द इतना दुबाऊं कैसे
छलकता है वह आँखो से छुपाऊं कैसे
गहरी है दास्तां  उसे भुलाऊं कैसे,
मिलने नही देती यह दुनीया मुझ को , तुम से
इस दुनीया  को समझाऊँ कैसे।
सुलगती है जो आग सीने में 
उसे बुझा पाऊँ कैसे।
दिल मे छिपी है तस्वीर तुम्हारी 
हनुमान की तरह फाड़ कर दिखाऊँ कैसे,
छोटा सा जीव हुँ इस धरा का
उस आसमान के फ़रिश्ते को छुपाऊं  कैसे,
जकड़ी हुँ इस मोह माया के बन्धन में
माँस ओर हडीयों के पिंजर मे
कंधों पर है गठरी भारी
डगर है डगमगाती
मंज़िल भी है दूर
भटकी हुँ अंधेरों में 
अब तुम ही बताओ 
तुम तक पहुँचे पाऊँ कैसे !!!
----मधुर----   

ऐक अफ़साना


इस रंग बिरंगी दुनीया मे
मुझ को भी रंग ज़माना है,
लेकर उस से एक पिचकारी
सब को उसी के रंग में रंग देना है।
लाल ,पिला,नीला और काला सफ़ेद 
सब को सप्तरंगी इन्द्र धनुष में मिल जाना है।
कड़ी बारीश के बाद हल्की धूप में
फिर नीले अम्बर मे उभर आना है।
मेरा तो बस एक ही अफ़साना है
इस सृषटि में ईश का रंग फैलाना है,
आसमानी परिंदों के साथ सदा चहचहाना है।
-------मधुर------

Wednesday, April 29, 2015

तुम क्या हो

तुम क्या हो,हमारी समझ से बाहर हो,
बनाते हो बिगाड़ते हो,जादु दिखाते हो,
क्यों  हमारी परीक्षा लेते हो?

तुम तो भावनायों से परे हो

हम मे कयो भर देते हो,
तुम्हारे पास तो आँसु हैं नहीं
हमे क्यों  आँसुओं से नहला देते हो।
तुम क्या हो---------
तुम्हें तो ज़ख़्म सताते नहीं
क्यों  हमें ज़ख़्मों के नासूर बना देते हो।
क्यूँ नही एक ही झटके से सब ख़त्म कर देते,
फिर ऐक नई सृष्टि की रचना, तुम जैसी,
जहां भावनायें ,आँसु ,दर्द कुछ भी नही
बस खुशीयां ही ख़ुशीया हर तरफ़ ।
तुम क्या हो-----------
---------मधुर----4/29/15

Saturday, April 25, 2015

तुम मेरे हो

दK,



यह मै नही कहती सृष्टि का कण कण कहता है
तुम मेरे हो बस मेरे ही रहना,
मुझे जाना है उस पार
मेरी उँगली पकड़ कर उस पार ले जाना
जहाँ कोई न हो मै ओर तुम
 तुम मेरे --------------
 पतों की सरसराहट कहती है
फुलों की महक कहती है
तुम मेरे--------------
बन कर मेरी कशती का मलाह
मुझे किनारे तक पहुँचा देना
लगा कर पंख फिर आकाश मे उड़ा देना
जहाँ कोई ना हो मै ओर तुम
तुम मेरे-----------------
सूर्य की रोशनी कहती है
चंदा की चाँदनी कहती है
तुम मेरे------------------

बस एक काम और कर देना
इन प्यासी अखीयों मे सावन की 
झड़ी  बन कर बरसते रहना
तुम मेरे हो मेरे ही रहना---
मधुर 

Friday, April 24, 2015

सपनों की बात



ओढ़ कर ओढ़नी जब मै सो जाती हुँ
सुंदर सपनों मे खो जाती हुँ
परियों के देशों मे बसेरा करती हुँ हर पल को जी लेती हुँ,

उनका आना आँख मिचोली करना
फिर हवा में उड़ जाना
आकाश को छु लेती हुँ
ओढ़ कर ओढ़नी---------------
जो पा न सकुं दिन के उजालों मे
रात को सपनों मे सब पा लेती हुँ
सब शिकवे ओर गिले भी
सपनों मे मिटा लेती हुँ,
और तो और अच्छे व्यंजन
भी पेट भर खा लेती हुँ
ओढ़ कर ओढ़नी---------
खुली जब आँख हुई प्रभात
फिर से आँखे मूँद लेती हुँ
रातों के सपनों मे फिर से खो जाती हुँ
ओढ़ कर ओढ़नी ---------
सुंदर सपनो मे-------------
-------मधुर


हम सब एक है



घना सा जंगल बीच मे एक पतली सी पगडंडी 
चली जा रही हुँ अपनी ही धुन मे गुनगुनाती हुई 
पहुँचे जाती हुँ और भी घने जंगलों के बीच 
शाम का समय यहाँ और कोई नही
मेरे और बेज़ुबान बृक्षों के सिवा
जो झूम झुम कर नृत्य कर रहे थे
और फुस फसा रहे थे
पतों की सरसराहट से लगा 
कुछ कहना चाहते है
रुक जाती हुँ पल भर के लिये
उनको सुनने के लिये
लगा बह हँसे रहे हैं
मै भी हसने लगी पागलों की तरह
हसती गई जब तक एक नही हो गई
उनके संग,
तब एक सरसराहट सी हुई लगा 
किसी ने कान मे आकर कहा
हम तुम एक हैं।
हम तुम एक हैं।
------मधुर

Thursday, April 23, 2015

चलती जाऊं


 पाने की खोज   
लम्बी हो घास नंगे हों पाँव
बस चलती जाऊँ चलती जाऊँ 
एक अनजानी राह पर ,
थक जाऊँ बैठ जाऊँ पल भर के लिये
फिर चल पड़ूँ ,एक ही लगन के साथ
कि पा जाऊँ तुम्हें एक दिन,
बस चलती जाऊँ चलती जाऊँ
एक---------
यह तो मैं नही जानती 
मेरी मंज़िल है कहाँ फिर भी 
चलती जाऊँ ,चलती जाऊँ 
एक ---------
तेरी खोज में
----मधुर

पापा की याद मे

   
कितना अच्छा होता हमने उनको देखा होता
कुछ पल उनकी नरम गोद मे बिताये होते
उनके अधरों का चुम्बन लिया होता
मगर ऐसा नसीब ही कहां था।
न जाने कयों उनकी याद में आँखे भर उठती हैं
जिनको हम ने कभी देखा भी नहीं
बरसों बीते उनको देह छोड़े हुये
फिर भी न जाने कयों अाज भी
उनको ढूँढती हुँ हर इन्सान में हर शैह में
आसमान पर में उभरी अाकृतियों में
और ढूँढती हुँ उन की ख़ुशबु को
हर बगिया के फूलों में 
जो छोड़ गये हैं यहीं कहीं ।
न जाने कयों मन चुपके चुपके 
रोता है सिसकी भी भरता है उनकी याद में।
--------मधुर

Snowball





God make me a snow ball
Light and pure
Roll me where ever you want
Carve me 
put me in the exhibition
So every one can enjoy
Then let me melt
In Sadhguru's feet
                       --Madhur 

राजा की दुल्हन



वायदा जो तूने कर लिया है मुझ से
मरने के बाद मिलूँगा तुझ से
अब मरने का कोई डर नही,
मौत पर बजेंगी शहनाइयाँ 
मै बनुंगी दुल्हन ,तुम दुल्हे राजा।
जुदाईयो की घड़ियों का अतं होगा
हम तुम  बस एक होंगे।
-------मधुर-------

Tuesday, April 21, 2015

साधक की शिकायत


      
यह कैसी दासता है प्रभु याद तेरी में
दिन रात आँसु बहाती हुँ मैं 
पाने को दर्शन तेरे समाधि लगाती हुं मैं,
मगर जब आते हो सामने सुध बुध खो देती हुँ मैं,
जिस पल का इंतज़ार था उस पल को गवारा कर देती हुँ मैं।
 ऐसा कयों ,पा कर  भी तुझ को खो देती हुँ मैं।
--------मधुर-------

स्वामी से मिलने की विरहां



माएँ नी  मेरीये मैं दुखड़े दिलां दे किथे रोवां
हंजु मेरे टिप टिप वरदे कुड्ती पई भिगोमां,
 राजंन रांजन करदी नी मै किवें  राजंन नु पांवां 
माएँ  नी मेरीये---------------

करदी हाँ जद  अँखियाँ बंद मैं बदली विच खो जावां
सोच के रांजन रैंदा एेथे  मै बदली नु जफीयां पांवां 
बदली एे जद झर झर वरदी बूदां बिच सिज जांवां 
माएँ  नी मेरीये-----------------

दिल मेरा लीरां लीरां होया किस दर्ज़ी कोल जांवां
सॉंज सवेरे सिजदे करदी रातां नु ओंसीया पांवां
जिनां अखींया विच  तुं वसदा  हैं ओना अखीयां नु किवें रुलावां
माएँ  नी मेरीये-------------------

माएँ  नी मेरीये मैं हालों बेहाल होई
माएँ  नी मेरीये मैं आपें तों बाहर होई
माए नी मेरी मैं किस जोगी  कोल जांवां 
माएं नी मेरीये---------------------

चकोर चकोरी गलां करदे मैं विरहा विच तड्फी जांवां  
गरम हवावां अावन जावन मैं लुआं  विच तपदी जावां
माएँ  नी मेरीये-------------------
याद तेरी विच मौत वी अावे मैं हस हस के टुर जांवां 
माएं नी मेरीये-------------------
                                                                  ---------------मधुर

Monday, April 20, 2015

बांसुरी की धुन



शाम का समय
सूरज ढल चुका है
बदली सी छा गई है,
मूँद कर आँखे हम
बैठे हैं अपने ही बग़ीचे में
देखते ही देखते
बारीश की एक नन्ही
फुहार आ गई
इन बुंदो की छम छम में लगा
श्याम बाँसुरी  बजा रहे हैं
हम बन के गोपी
ठुमका  लगा रहे हैं
बाँसुरी  की धुन मे ताल
मिला रहे हैं ,
हुई बंद बारीश , खोली आँखे
तो देखा हम अकेले ही
गुन गुन रहे हैं।


------मधुर-------

Thursday, April 16, 2015

फूलो की दासता







इन फुलों को तो देखो
क्या रंग है क्या खशबु है
पूरी कायनात की तस्वीर है,
यह बोलते नही 

फिर भी सब कुछ कह देते हैं,

एक बेजान इन्सान को
जान दे देते हैं,

इनकी और नज़र लगा कर तो देखो

इनको प्यार से सलाह कर तो देखो
इनको शिवलिंग पर चढ़ा कर तो देखो
फिर तुम भी इन जैसे हो जायोगे,
चारों तरफ़ ख़ुशियाँ ही ख़ुशीया होंगी
उनकी महक मे खो जायोगे,
इस सृष्टि का क़र्ज़ अदा कर पायोगे

ब्रह्म विष्णु और महेश में मिल जाओगे।--


----------मधुर

Wednesday, April 15, 2015

फुलों और तितलियों की गुफ़्तगू


फुलों ने तितलियों को आपने उपर
मँडराते हुये कहा

क्यूँ मँडराती हो उपर मेरे

आ जायो पास मेरे
चूम लो मुझ को,
छुने दो मेरे को तुम्हारे नन्हें पाँव
हम मिल कर इस बगिया की
शान बड़ा दें।
किसी की नज़रों का फँसाना बन जाये।
कब तक मंडरायोगी उपर मेरे
मेरे पास आ कर मुझे छु कर
मुझे अमर कर दो।
मै किसी के हाथ से टूटना नही चाहता
टूट कर बिखरना नही चाहता
मै तुम से मिल कर एक हो
जाना चाहता हुँ
महकाना चाहता हुँ अपनी खशबु
इस बगिया मे,
अकेला पड़ जाऊगा तो
मर जाऊँगा
मुझ इस मरने से बचा लो
मेरे संग रास रचा लो
इस नीले अम्बर पर हमारे
प्यार की अमर
कहानी लिख दो।
मधुर!

रिशते





वह भगवान के बनाए रिश्ते  भी क्या
जो ज़मीन पर गिराते हैं,

पैरों के नीचे दबोचते है।
इस से तो अपने बनाए दोस्त

अच्छे  हैं जो दुख मे साथ देते हैं।
और सुख में भी साथ ठुमका लगाते हैं।

-----मधुर----

जिंदगी का तजुरबा





हमेशा संगेमरमर मर चलोगे तो फिसल जायोगे
सँभल ना पायोगे 
काँटों और आग पर चलोगे तो

चुभन और तपश 


से इतने मज़बूत हो जाओगे 
कि गिरने वालों को 
भी संभाल पायोगे 
----मधुर------

सपना










मन को ज़िस की चाह है घनी,
क्या वह केवल सपना ही है,
जीने की आभीलाषायों का
जीवन भर क्या तपना ही है।
मधुर,

दिवानी

           
दिवानी बना दिया प्यार ने तेरे  
दिन के उजालों मे भीदेखती हुँ तारे
रातों को नाचती हुँ संग मैं तेरे
ओ चंदा जुहीं चमकते रहना पूनम की तरह
जब तक जाँ मे  जाँ है मेरे


.......मधुर.......

पिंजरा




बंद हुँ इस पिजंरे मे उड़ भी नहीं सकती
लगा है मौत का ताला
खोल भी नही सकती
चाबी है पास तेरे
कुछ कर भी नही सकती
अब तो दया पर निर्भर हुँ तुम्हारी 
कब करोगे आज़ाद 
इस लिये घुटने टेकती हुँ दिन रात
अपनी हिरासत मे ले लो
इस पिंजर से छुटकारा दिला दो।

-------मधुर -------

फ़रियाद





ऊपर नीला अंमबर 

नीचे धरती हरियाली
बीच मे मैं हुँ लटकी 
पार करो प्रभु मेरे
भवसागर मे मैं हुँ अटकी।


-----मधुर----

क़ुदरत का कोप






अप्रैल का middle था
Daffodils खिल कर चले गये
Mums की बन्द कलियाँ झिल मिला रही थी

बन्द Tulip भी खिलने की आशा मे थे।
एक दम ठंड का एक झोंका आया
हवायों ने भी ख़ूब शोर मचाया


मानो कलियाँ बन्द परतों मे कराह रही हों
कुछ बूढ़े पते शिशु पतों 

के मर जाने मातम मना रहे हो

Tulip जो रंग बिखेरने जा रहे थे
ठंडी हवायों के घेरे मे आ गये
नन्ही कलियाँ खिलने से पहले ही मर गई,


जिनका मै कब से इंतज़ार कर रही थी
खिलने का
हर सुबह एक एक खिलते हुये फूल को
निहार रही थी
इनके रंगो और खशबु मे अकसर
खो जाती थी


एक ही झटके से सभी रंग भरे पौधे बेरंग
और बेजान हो गये
जैसे घनघोर युध के बाद कुरुक्षेत्र के मैदान का 


एक नज़ारा हो
क़ुदरत का यह कोप मुझ से देखा ना गया
मै बहुत उदास हो गई।                  

फिर एक ही झटके ने मुझे झँझोड़ा
उदास क्यों हो

नया सवेरा आयेगा फिर आगंन फूलों
से भर जायेगा
ऐसा ही हुया



---------------मधुर

बिरहा

कान्हा 
तेरे बिना कुछ मुझे अच्छा नही लगता                        मन भी ख़ाली तन भी ख़ाली                 
बिरह की मारी हुँ दुखियारी हुँ                                   कोई नही है संगी साथी
कब आयोगे श्याम प्यारे                                            कब आयोगे नज़र मिलाने
भोर हुई है साँझ हुई है                                              कब आयोगे दर्शन देने
कब आयोगे द्वार पे मेरे                                              बरसों बीते सदियाँ बीती
अँखियाँ मेरी तरस गई है                                           कब आयोगे कब आयोगे
कब आयोगे प्यास बुझाने                                           बिरह की मारी हुँ दुखियारी हुँ      ----मधुर



भगवान




भ------भूमी
ग-------गगन
व-------वायु
आ------अग्नि
न--------नीर
इन पाँच तत्वों के मेल को भगवान कहते है।

भगवान वह है,----जो हर सुबह अपनी सुनहरी किरणों के साथ सूर्या बन कर
निकलता है अपनी रोशनी और तपश से सब को नया जीवन देता है।
भगवान वह है,----जो रात को चन्दा बन कर तारों के संग रास रचाता है। कभी घटता है
कभी बड़ता है। आँख मिचोली करता है।
भगवान वह है,----जो फुलों मे रंग भरता है। फिर मीठी मीठी ख़ुशबुओं के साथ महकता है।
जो पक्षी बन कर आसमान की ऊँचाइयों को छुता है।फिर धरा पर आ कर चोगा
चुगता है।
भगवान वह है, ----जो नदीयाँ बन कर टेडा मेडा चलता है। फिर सागर मे मिल कर सागर ही बन जाता
है। जो वृक्ष बन कर अटल खड़ा रहता है। कभी पिला कभी लाल कभी हरा हो
जाता है। कभी बिलकुल नग्न , फिर बर्फ़ के नीचे दब जाता है। नही घबराता
वह,बसंत आने पर फिर से फुलों और पतों के संग झूमने लगता है।
भगवान वह है,----जो हर इन्सान के अंदर टर टर करता फिर भी सुनाई नही देता। हर माँ की कोख से
शिशु बन कर आता है, फिर मॉ के ही स्तनों से दूध की धारा बन कर उस का पालन
पोषण करता है।
भगवान वह है,----जो हमारे अंदर भी है बाहर भी है। सृीशटी के कण कण मे समाया हुया है।मगर
अदृश्य है।

सब भगवान को ढुंडते है। कैसे उस तक पहुँचे?
पाना है अगर उस को एक ही तरीक़ा है। बाहर के पट बंद कर के अदंर के पट खोलो।
कर के बंद आँखे अंत करण मे खो जायो , गहरी शांति का अनुभव कर लो।
जब आँखो से दो बूँद पानी टपक जाये तो समझो भगवान का आप से मिलन हो गया।

मधुर

तुम् ही हो





तेरे पहलु मे इस क़दर बैठुं
कि किसी को ख़बर ना हो
किसी की बात छोड़ो
मुझे भी एहसास न हो
कि मै नही बस तुम ही हो।
------------मधुर

जीवन चक्र



दुनिया मे आये हो
दुनिया दारी तो निभानी है
मत फँस जायो माया के जाल मे
जानो करमों के बन्धन से छुटकारा पाना है।
कैसे और कियुं के चक्रों मे मत पड़ जायो
गठरी जो लाये है जन्मों से खोल दो
हो कर मस्त बसी की धुन पर नाच लो।
-----------------मधुर