कान्हा
तेरे बिना कुछ मुझे अच्छा नही लगता मन भी ख़ाली तन भी ख़ाली
बिरह की मारी हुँ दुखियारी हुँ कोई नही है संगी साथी
कब आयोगे श्याम प्यारे कब आयोगे नज़र मिलाने
भोर हुई है साँझ हुई है कब आयोगे दर्शन देने
कब आयोगे द्वार पे मेरे बरसों बीते सदियाँ बीती
अँखियाँ मेरी तरस गई है कब आयोगे कब आयोगे
कब आयोगे प्यास बुझाने बिरह की मारी हुँ दुखियारी हुँ ----मधुर
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