Wednesday, April 15, 2015

क़ुदरत का कोप






अप्रैल का middle था
Daffodils खिल कर चले गये
Mums की बन्द कलियाँ झिल मिला रही थी

बन्द Tulip भी खिलने की आशा मे थे।
एक दम ठंड का एक झोंका आया
हवायों ने भी ख़ूब शोर मचाया


मानो कलियाँ बन्द परतों मे कराह रही हों
कुछ बूढ़े पते शिशु पतों 

के मर जाने मातम मना रहे हो

Tulip जो रंग बिखेरने जा रहे थे
ठंडी हवायों के घेरे मे आ गये
नन्ही कलियाँ खिलने से पहले ही मर गई,


जिनका मै कब से इंतज़ार कर रही थी
खिलने का
हर सुबह एक एक खिलते हुये फूल को
निहार रही थी
इनके रंगो और खशबु मे अकसर
खो जाती थी


एक ही झटके से सभी रंग भरे पौधे बेरंग
और बेजान हो गये
जैसे घनघोर युध के बाद कुरुक्षेत्र के मैदान का 


एक नज़ारा हो
क़ुदरत का यह कोप मुझ से देखा ना गया
मै बहुत उदास हो गई।                  

फिर एक ही झटके ने मुझे झँझोड़ा
उदास क्यों हो

नया सवेरा आयेगा फिर आगंन फूलों
से भर जायेगा
ऐसा ही हुया



---------------मधुर

No comments:

Post a Comment