साधक की शिकायत
यह कैसी दासता है प्रभु याद तेरी में
दिन रात आँसु बहाती हुँ मैं
पाने को दर्शन तेरे समाधि लगाती हुं मैं,
मगर जब आते हो सामने सुध बुध खो देती हुँ मैं,
जिस पल का इंतज़ार था उस पल को गवारा कर देती हुँ मैं।
ऐसा कयों ,पा कर भी तुझ को खो देती हुँ मैं।
--------मधुर-------
No comments:
Post a Comment