तुम क्या हो,हमारी समझ से बाहर हो,
बनाते हो बिगाड़ते हो,जादु दिखाते हो,
क्यों हमारी परीक्षा लेते हो?
तुम तो भावनायों से परे हो
हम मे कयो भर देते हो,
तुम्हारे पास तो आँसु हैं नहीं
हमे क्यों आँसुओं से नहला देते हो।
तुम क्या हो---------
तुम्हें तो ज़ख़्म सताते नहीं
क्यों हमें ज़ख़्मों के नासूर बना देते हो।
क्यूँ नही एक ही झटके से सब ख़त्म कर देते,
फिर ऐक नई सृष्टि की रचना, तुम जैसी,
जहां भावनायें ,आँसु ,दर्द कुछ भी नही
बस खुशीयां ही ख़ुशीया हर तरफ़ ।
तुम क्या हो-----------
---------मधुर----4/29/15
No comments:
Post a Comment