Monday, April 20, 2015

बांसुरी की धुन



शाम का समय
सूरज ढल चुका है
बदली सी छा गई है,
मूँद कर आँखे हम
बैठे हैं अपने ही बग़ीचे में
देखते ही देखते
बारीश की एक नन्ही
फुहार आ गई
इन बुंदो की छम छम में लगा
श्याम बाँसुरी  बजा रहे हैं
हम बन के गोपी
ठुमका  लगा रहे हैं
बाँसुरी  की धुन मे ताल
मिला रहे हैं ,
हुई बंद बारीश , खोली आँखे
तो देखा हम अकेले ही
गुन गुन रहे हैं।


------मधुर-------

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