Friday, April 24, 2015

सपनों की बात



ओढ़ कर ओढ़नी जब मै सो जाती हुँ
सुंदर सपनों मे खो जाती हुँ
परियों के देशों मे बसेरा करती हुँ हर पल को जी लेती हुँ,

उनका आना आँख मिचोली करना
फिर हवा में उड़ जाना
आकाश को छु लेती हुँ
ओढ़ कर ओढ़नी---------------
जो पा न सकुं दिन के उजालों मे
रात को सपनों मे सब पा लेती हुँ
सब शिकवे ओर गिले भी
सपनों मे मिटा लेती हुँ,
और तो और अच्छे व्यंजन
भी पेट भर खा लेती हुँ
ओढ़ कर ओढ़नी---------
खुली जब आँख हुई प्रभात
फिर से आँखे मूँद लेती हुँ
रातों के सपनों मे फिर से खो जाती हुँ
ओढ़ कर ओढ़नी ---------
सुंदर सपनो मे-------------
-------मधुर


No comments:

Post a Comment