पिंजरा
बंद हुँ इस पिजंरे मे
उड़ भी नहीं सकती
लगा है मौत का ताला
खोल भी नही सकती
चाबी है पास तेरे
कुछ कर भी नही सकती
अब तो दया पर निर्भर हुँ तुम्हारी
कब करोगे आज़ाद
इस लिये घुटने टेकती हुँ दिन रात
अपनी हिरासत मे ले लो
इस पिंजर से छुटकारा दिला दो।
-------मधुर -------
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