कितना अच्छा होता हमने उनको देखा होता
कुछ पल उनकी नरम गोद मे बिताये होते
उनके अधरों का चुम्बन लिया होता
उनके अधरों का चुम्बन लिया होता
मगर ऐसा नसीब ही कहां था।
न जाने कयों उनकी याद में आँखे भर उठती हैं
जिनको हम ने कभी देखा भी नहीं
बरसों बीते उनको देह छोड़े हुये
फिर भी न जाने कयों अाज भी
उनको ढूँढती हुँ हर इन्सान में हर शैह में
आसमान पर में उभरी अाकृतियों में
और ढूँढती हुँ उन की ख़ुशबु को
हर बगिया के फूलों में
जो छोड़ गये हैं यहीं कहीं ।
न जाने कयों मन चुपके चुपके
रोता है सिसकी भी भरता है उनकी याद में।
--------मधुर
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