दिल में है दर्द इतना दुबाऊं कैसे
छलकता है वह आँखो से छुपाऊं कैसे
गहरी है दास्तां उसे भुलाऊं कैसे,
मिलने नही देती यह दुनीया मुझ को , तुम से
इस दुनीया को समझाऊँ कैसे।
सुलगती है जो आग सीने में
उसे बुझा पाऊँ कैसे।
दिल मे छिपी है तस्वीर तुम्हारी
हनुमान की तरह फाड़ कर दिखाऊँ कैसे,
छोटा सा जीव हुँ इस धरा का
उस आसमान के फ़रिश्ते को छुपाऊं कैसे,
जकड़ी हुँ इस मोह माया के बन्धन में
माँस ओर हडीयों के पिंजर मे
कंधों पर है गठरी भारी
डगर है डगमगाती
मंज़िल भी है दूर
भटकी हुँ अंधेरों में
अब तुम ही बताओ
तुम तक पहुँचे पाऊँ कैसे !!!
----मधुर----
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