घना सा जंगल बीच मे एक पतली सी पगडंडी
चली जा रही हुँ अपनी ही धुन मे गुनगुनाती हुई
पहुँचे जाती हुँ और भी घने जंगलों के बीच
शाम का समय यहाँ और कोई नही
मेरे और बेज़ुबान बृक्षों के सिवा
जो झूम झुम कर नृत्य कर रहे थे
और फुस फसा रहे थे
पतों की सरसराहट से लगा
कुछ कहना चाहते है
रुक जाती हुँ पल भर के लिये
उनको सुनने के लिये
लगा बह हँसे रहे हैं
मै भी हसने लगी पागलों की तरह
हसती गई जब तक एक नही हो गई
उनके संग,
तब एक सरसराहट सी हुई लगा
किसी ने कान मे आकर कहा
हम तुम एक हैं।
हम तुम एक हैं।
------मधुर
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