Friday, April 24, 2015

हम सब एक है



घना सा जंगल बीच मे एक पतली सी पगडंडी 
चली जा रही हुँ अपनी ही धुन मे गुनगुनाती हुई 
पहुँचे जाती हुँ और भी घने जंगलों के बीच 
शाम का समय यहाँ और कोई नही
मेरे और बेज़ुबान बृक्षों के सिवा
जो झूम झुम कर नृत्य कर रहे थे
और फुस फसा रहे थे
पतों की सरसराहट से लगा 
कुछ कहना चाहते है
रुक जाती हुँ पल भर के लिये
उनको सुनने के लिये
लगा बह हँसे रहे हैं
मै भी हसने लगी पागलों की तरह
हसती गई जब तक एक नही हो गई
उनके संग,
तब एक सरसराहट सी हुई लगा 
किसी ने कान मे आकर कहा
हम तुम एक हैं।
हम तुम एक हैं।
------मधुर

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