Wednesday, August 26, 2015

उलझन




तुम्हें राम कहुं या श्याम
महांदेव कहुं या सद्गुरू
बहुत उलझन मे हुँ।
वही झील सी गहरी आँखे
वही नटखठ अदांए
वही टेढ़ा पन
वही भोला पन
वही श्यामल रंग
वही घुंघराले बाल
वही हाथी सी मस्त चाल
वही बच्चों सी खिलखिलहट
वही तेजस्वी रूप
बहुत उलझन मे हुँ।
तुम्हें राम कहुं या श्याम
महादेव कहुं या सद्गुरू
बहुत उलझन मे हुँ।
सुना है और तस्वीरों में देखा है
श्याम मोर मुकुट पहनते हैं
राम धनुष धारी हैं
महांदेव  सर्पों की माला से शशोभित हैं
मगर देखा है इन आँखो ने
सद्गुरू तो फूलो के हार पहनते हैं
रंग बिरंगें शाल  पहनते है
मुझे तो यह तीनो ही सद्गुरू मै नज़र आते हैं


--------मधुर---------------

Monday, July 6, 2015

सीवा तेरे सीवा तेरे


इस भरी दुनीया में मैंने नज़रें मिलाई भी 
नही किसी से।     ( सिवा तेरे सिवा तेरे)

टपकते हैं विरह के आँसु इन नयनों से 
भीगोते हैं चुनरी मेरी ,यह बात मैंने किसी को
बताई  भी नहीं।     (सिवा तेरे सिवा तेरे)

भोर होते ही जब पक्षी चहचहाते हैं
निद्रा से उठती हुँ तो कहीं
देखती भी नहीं।    (सिवा तेरे सिवा तेरे)

आँख जब से मिलाई है तुम से  जो सकुन
पाया है मन ने  यह राज किसी को 
बताया  भी वही ।   (सिवा तेरे सिवा तेरे)

------मधुर-------

नई बहार बन कर



आये हो मेरी जिंदगी मे तुम
एक नई बहार बन कर
ख़यालों मे खोई रहती हुँ
जमी पर पेर टिकते नही
आँखे बंद करती हुँ तो लगता है
हवा मै उड़ रही हुँ
एक नई बहार --------------

सूनी थी एक पतझड़ के बृक्षों की तरह
फूलो से भर गई हुँ ,
खशबु बिखेर रही हुँ
एक नई बहार----------------

उलझी थी दुनीया की भीड़ मे
अब अपने में खो गई हुँ
कभी रोती हुँ कभी हँसती हुँ
एक नई बहार ----------------

प्यासी थी सदियों से
समुंदर सा बन गई हुँ
लहरों से खेल रही हुँ
एक नई बहार ---------------
आये हो मेरी जिदंगी मे तुम
एक नई बहार -----------------

--------- मधुर-------------

एक भक्त की पुकार



तुम मेरी गली मे आना 

कभी राम बन कर कभी श्याम बन कर 
तुम मेरी गली मे आना 
कभी महांदेव बन कर कभी सद्गुरू बन कर 
तुम मेरी गली मे आना ,

मैं फूलों की सेज बिछाऊँ 
मै चंदन का टीका लगाऊँ
मैं घी का दीपक जलाऊँ
तुम मेरी ....................

मैं बसी की धुन पर गाऊँ 
मैं वीणा के तार हिलाऊँ
मैं मोरनी बन कर नाचुं
तुम मेरी...............

मैं फुलें का हार पहनाऊँ
मै रेशमी शाल ओढाऊं
मैं चरणों को धो धो पिऊँ
तुम मेरी.................

------मधुर--------

चरणों मे लगाये रखना



तुझ से मे  तुम्हें को मांगु , मुझे कभी ना मत करना
चरणों में लगाये रखना ,   मुझे कभी दूर मत करना

ना मांगु सोना चाँदी,   ना मागुं हीरे मोती
तेरा दीदार मांगु , मुझे कभी ना मत करना
चरणों मे------------------------------

दुखों मे तुझ को पायुं, सुखों मे तुझ को गायुं
तेरे नाम में रगं जायुं , मुझे क्भी ना मत करना
चरणों मे------------------------------

बिन माँगे सब कुछ पाया ,यह जीवन सफल बनाया
पुजारी बन के रहुं तेरे दर का ,मुझे कभी ना मत करना
चरणों मे --------------------------------

------------मधुर-------------------

Thursday, June 25, 2015

गुड़िया


 एक नन्ही सी जान मिट्टी का शरीर धारन कर जब
इस संसार मे आई तो एक बद क़िस्मत गुड़िया कहलाई,
ज़माने ने ठंडी अांखें भरी ,उस बाप के प्यार से वचिंत रही 
जो जन्म लेने से छह महीने पहिले ही अलविदा कह गया
यह तो विधाता की विधी थी,मगर बेटी को मुजरिम का नाम मिल गया।

एक फुफेरी बहिन ने नाम दिया "मधुर " तो मधुर लता कहलाई
क्या जानु , कौन हुँ  कहाँ से आई हुँ और  कियुं आई हूँ ,
अधूरे प्यार से पलती हुई  हमेशा बेचारी कहलाई
भावनायों से झुजती हुई जवानी की दहलीज़ पर आई,

बहुत से सवाल उठे जिनको सुलझा न पाई
उलझे हुये सवालों की गुथी और भी उलझती गई
देख कर लोगों को हँसते हुये, हँसना चाहती थी 
 वह गुड़िया मगर कभी खुल कर हंस ना पाई।

शादी हुई परिवार से दूर हुई, विदेशी विरानीओ मे सकपका सी गई
ढूँढती थी एक रोशनी की किरण,और भी अंधेरों मे खो गई
प्रश्नों की गुत्थी और भी उलझ गई ,सूलझा न पाई
सोच कर इसी का नाम जीवन है, गुमसुम सी रही।

जन्म लो ,पढ़ाई करो, शादी करो, फिर बच्चे पैदा करो
उनका पालन पोशन करो, समय आने पर जहाँ से चले जाओ,
क्या यही जिंदगी है?
इस जिदंगी का मक़सद जानना चाहती थी पर पा न सकी।

अचानक एक दिन एक फ़रिश्ता उस की जिदंगी मे अाया
आशायों का सवेरा हुया, जिदंगी मे एक नया मोड़ आया,
अज्ञान के अंधेरों से निकल कर रोशनी मे आ गई
प्रश्नों की उलझी हुई गुथी धीरे धीरे सुलझने लगी।

ख़ुशीया जो ढुंडती थी उम्र भर ,पल भर ही में पा गई
आँखो से नीर बहने लगे ,  सुधबूध सी खो गई
उनके चरणों मे गिर पड़ी, वह हमेशा के लिये उनकी हो गई
वह सपने जो संजोये थे पूरे होने लगे।

जिंदगी का राज मिल गया
जीने का मक़सद मिल गया
वह अपने मे पूर्ण हो गई
एक बदकिस्मत गुड़िया ख़ुशक़िस्मत हो गई।
-----मधुर--------2005

कृष्णा



पकड़ कर हाथ न छोड़ देना
बीच मे,ले जाओ उस पार।
मिला कर आँख न चुराओ हम से 
खो जाने दो इन नशीले नयनो मे।


छुड़ा कर पाँव न भागो हम से
भर लेने दो माँग इन चरणों की धूल से।
न बनो निर्मोही इतने कृष्णा जिसके
वियोग मे राधा तड़पी दिन रात ।

हम तो फूल हैं तुम्हारी माला के
माला मे ही रहने दो
चूम लो और महका दो
अपनी दिवीयता से




-----मधुर------

Thursday, June 18, 2015

ऐ दिल

















मैं दिल से पूछती  हुँ क्या तुम साथ न दोगे
मुझे ज़रूरत है तुम्हारी दोस्ती की क्या तुम निभा न दोगे।

मैंने देखी दुनीया सारी न मिला हम सफ़र तुम सा
इस मन मोजी दुनीया मै सब मनमोजी ही पाए 
न मिला हमसाया तुमसा ।

चाहती हुँ बैठे हों किसी विराने  मे
तुम मै और मेरा साया
तीनों ही इतने मस्त हों न हो वहां कोई पराया ।

ऐ दिल अगर तुम दगा  भी दोगे
मैं फिर भी ग़म ना लूँगी 
शमशान की माटी से दोस्ती कर लूँगी 
उसी से बसर  तमाम ज़िंदगी कर लूँगी ।


Monday, June 8, 2015

मौत एक अफ़साना


हमें इस बात को हमेशा दोहराना है
एक दिन हमें भी इस जहाँ से जाना है
यह तो घर अपना नहीं किराये का ठिकाना है
जहाँ से आए है फिर वहीं वापिस जाना है
क्यों करते हो जमा, इतना धन संपती और जायदाद 
यह सब यहीं तो छोड जाना है।
कर लो दोस्ती उसी से जिस के पास जाना है
क्यों करते हो इतनी चिंता क्या ले जाना है
लाए हो एक पिजंर उन्नीस या बीस इंच का
वह भी यहीं छोड़ जाना है।
जागो ,खोलो आँखे ,जानो कौन हो
किस मक़सद से आए हो ,कहाँ जाना है।
यह दुनीया तो एक माया है, भ्रम है
इस भ्रम मे नही अटक जाना है
इस मे तो सिर्फ़ एक कमल के फूल 
की तरह रह जाना है।
नही पड़ना चौरासी के चक्करों मे 
ढूँढना अपना असली ठिकाना है।
जिदंगी तो एक पानी का बुलबुला है
न जाने कब फूट जाए ।
कर लो तैयारी अभी से ना जाने कब 
बुलावा आ जाए।
ढूँढ लो पता उस का Internet से वहाँ शाही ठिकाना है
उस के पास तो क्यानात का ख़ज़ाना है।
कर लो आज से ही reserve एक अच्छा सा पिंजर
जिस मे फिर वापिस आना है,
कौन जाने शायद वहीं रह जाना है।
कर लो दोस्ती उसी से जिस के पास जाना है
दुनिया तो एक ड्रामा है जिस मे 
अच्छे से रोल निभाना है
आए थे रोते रोते बस हँसते हँसते वापिस जाना है।
जीवन तो है गाड़ी का एक सुहाना सफ़र जिसको
हँस कर ख़ुशी से तय कर जाना है
आते ही मंज़िल अपनी स्टेशन पर उतर जाना है
कर लो दोस्ती उसी से जिस के पास जाना है
करो याद उसे दिन रात जिसे
अपनी कशती का मलाह बनाना है
उसी के पास तो हमारा असली ठिकाना है।
फिर मौत से क्या घबराना 
यह तो सफ़र सुहाना है
एक नगरी से निकल कर दूसरी नगरी मे जाना है
मौत तो एक सुन्दर अफ़साना है
जो पिछे रह जाने वालों ने गुनगुनाना है।
रोते रोते आए थे हँसते हँसते विदा हो जाना है
कर लो दोस्ती----------
--------मधुर---------

Tuesday, May 26, 2015

आशा की किरन


चलते चलते उस मुक़ाम पर आ पहुँची हुँ
जहाँ तेरी किरण सी नज़र आने लगी है
एक आशा सी बंध गई है एक उम्मगं सी जग गई है

सपनो की बातें सच मे बदलने लगी हैं,
तेरे तक पहुँचने की एक डोर सी मिल गई है,
डरती हुँ कहीं,
ऐसा ना हो बीच मे ही टूट जाए ये डोर
आ जाए जिदंगी मे कोई ऐसा मोड़
फिर दलदल मे फँस जाऊँ
इस माया मे जकड़ जाऊँ
भूल जाऊँ ,मैं कौन हुँ ,कियुं आई हुँ
कहाँ जाना है।
अब तो बस ऐक ही लगन है,
तेरे तक पहुँच पाऊँ,
इस आवागमन से दूर कही दूर
तेरी ज्योति मे मिल जाऊँ।
----मधुर---------

Monday, May 11, 2015

लड़की

लड़की की दासता
पैदा होती है जब लड़की
आँहें भरता है परिवार
बड़ी होती है जब वह
तो आहें भरता है ज़माना
डोली मे बैठती है तो
आहें भरता है मुहल्ला
यह तो उसकी तक़दीर है
मिलती है फूलों की बगिया
या काँटों भरा आशियाना ।
-----मधुर----

Saturday, May 9, 2015

एक पौदे की दासता


एक माली ने बीज लगाया 
फिर छोड़ गया दुनीया के सहारे
समय बीता। 

बह बीज धरती से बाहर आया
थोड़ा बड़ा हुया 
मगर पनप ना पाया ,रौदां गया
पैरों तले,
एक दिन बारीश की बूँदों ने फिर से
जीवत कर दिया उसे
झुमका रहा हवा के झोंकों से पिटता रहा
मगर उदास अपने माली को याद करता रहा
फिर थोड़ा और बड़ा हुया सँभला,
समया पा कर उस पर कुछ कलियाँ आईं,
मगर खिल न पाईं,
एक दिन अचानक एक नये माली ने
उसे पहचाना,सराहा और प्यार से
सींचने लगा,
पौदे मे ख़ुशी की लहर आ गई
हवायों के संग झूमने लगा
अपनी पहचान पा गया
बंद कलियाँ खिलीं और फूल बन गई
अपनी खशबु सारी कायनात मे बिखरने लगा।
--------मधुर----------

Friday, May 8, 2015

अकेली

अकेली चल रही थी 
क़ाफ़िले से जुड़ गई हुँ,
भागती थी जिन्ह रिश्ते नातों से
उन्हीं की माला का एक मोती बन गई हुँ,
यह तो मै नही जानती यह ठीक है या ग़लत,
वही जाने जिस के हाथ मे है
मेरी ज़िंदगी की संलामत
मुझे फ़िकर काहे का!!!!!!!!
I am just breathing!!!!!!!
-----मधुर-----

Thursday, May 7, 2015

आँसु





हम ने उनकी याद मे आँसु बहा कर

चुनरी भिगो दिया,
बह आये आँसु उड़ाये
बादल बनाये फिर 

छम छम बरसाये
हम को नहलाये।
जय हो प्रभु
----मधुर----

Wednesday, May 6, 2015

ज़िंदगी का सफ़र



हम ज़िंदगी के सफ़र मे यूँही चलते रहे,
कुछ दुख आए कुछ सुख आए 

सब को निपटाते गए ,
कुछ रिश्ते बने कुछ टुटे
उन को भी सैहते गए,
कुछ दोस्त दोस्ती निभाते रहे
कुछ छूट गए ,
छूटने वालों को भूल गए
जो बने रहे उनके साथ
सुहाना सफ़र तय करते गए
------मधुर----------

Tuesday, May 5, 2015

आँखे




लड़की का दिल दिल नही होता दरीया होता है,
जब भर जाता है नैनो से नदीयाँ बन कर बह जाता है।
----------------------------------------
छलकते है जो आँखो से
अकसर लोग उन्हे आँसु कहते हैं
समझे जो प्यार की भाषा
वह उसे विरह के मोती कहते हैं।
----------------------------
सुख में भी छलकती हैं यह आँखे
दुख मे भी नीर बहती हैं यह आँखे
जब प्रभु की याद मे आँसु टपकाती हैं
तो धन्य हो जाती यह आँखे।
----------------------------------

एक अंधेरी सनसनी रात में
सोये थे सब गहरी नींद मे,
आँसु बहाते थे हम
आँसु बहा कर मन हल्का कर के
सोना चाहते थे हम,
आँसु बहा कर मन तो हल्का हो गया
सो फिर भी न सके
क्योंकि तकिया भारी हो गया।
.........मधुर..........


Saturday, May 2, 2015

यह मोती


मैं मर कर भी अपनी ज़िंदगी तुम्हें दे दुं,
मेरी हर धड़कन मे तुम धड़कते हो
मेरी हर साँस मे तुम बसते हो
इसी हर साँस के कारन मै जीवंत हुँ,
यह सिलसिला युं ही चलता रहे 
सहर होने तक,
जब यह सासों की कड़ी टूटे
देखो बिखरने ना पाए यह मोती
तुम्हारी साँसों की लड़ी मे जुड़ जायें
यह मोती,
यह सिलसिला यूँ ही चलता रहे
सहर होने तक।
------मधुर-----


Friday, May 1, 2015

खोने की चाह

लोग गाते हैं अकसर 'दर्शन दो भगवान'
मै गाती हुं  ' दर्शन न दो भगवान'
मै इसी तड़प मे रहना चाहती हुँ
तुझे पा कर भी खोना चाहती हुँ
पा जाऊँगी तो मर जाऊँगी 
सह ना पाऊँगी 
मैं इस मरने से घबराती हुँ,
इस चाह मे रहना चाहती हुँ
तुझे पा कर भी खोना चाहती हुँ।
 तड़प मे ही तो असली जीना है
पा कर तो मीट जाना है
मै मिटना नही चाहती
मिटने से घबराती हुँ
तुझे पा कर भी खोना चाहती हुँ। 
-----मधुर----

Thursday, April 30, 2015

मिलने की चाह
























दिल में है दर्द इतना दुबाऊं कैसे
छलकता है वह आँखो से छुपाऊं कैसे
गहरी है दास्तां  उसे भुलाऊं कैसे,
मिलने नही देती यह दुनीया मुझ को , तुम से
इस दुनीया  को समझाऊँ कैसे।
सुलगती है जो आग सीने में 
उसे बुझा पाऊँ कैसे।
दिल मे छिपी है तस्वीर तुम्हारी 
हनुमान की तरह फाड़ कर दिखाऊँ कैसे,
छोटा सा जीव हुँ इस धरा का
उस आसमान के फ़रिश्ते को छुपाऊं  कैसे,
जकड़ी हुँ इस मोह माया के बन्धन में
माँस ओर हडीयों के पिंजर मे
कंधों पर है गठरी भारी
डगर है डगमगाती
मंज़िल भी है दूर
भटकी हुँ अंधेरों में 
अब तुम ही बताओ 
तुम तक पहुँचे पाऊँ कैसे !!!
----मधुर----   

ऐक अफ़साना


इस रंग बिरंगी दुनीया मे
मुझ को भी रंग ज़माना है,
लेकर उस से एक पिचकारी
सब को उसी के रंग में रंग देना है।
लाल ,पिला,नीला और काला सफ़ेद 
सब को सप्तरंगी इन्द्र धनुष में मिल जाना है।
कड़ी बारीश के बाद हल्की धूप में
फिर नीले अम्बर मे उभर आना है।
मेरा तो बस एक ही अफ़साना है
इस सृषटि में ईश का रंग फैलाना है,
आसमानी परिंदों के साथ सदा चहचहाना है।
-------मधुर------

Wednesday, April 29, 2015

तुम क्या हो

तुम क्या हो,हमारी समझ से बाहर हो,
बनाते हो बिगाड़ते हो,जादु दिखाते हो,
क्यों  हमारी परीक्षा लेते हो?

तुम तो भावनायों से परे हो

हम मे कयो भर देते हो,
तुम्हारे पास तो आँसु हैं नहीं
हमे क्यों  आँसुओं से नहला देते हो।
तुम क्या हो---------
तुम्हें तो ज़ख़्म सताते नहीं
क्यों  हमें ज़ख़्मों के नासूर बना देते हो।
क्यूँ नही एक ही झटके से सब ख़त्म कर देते,
फिर ऐक नई सृष्टि की रचना, तुम जैसी,
जहां भावनायें ,आँसु ,दर्द कुछ भी नही
बस खुशीयां ही ख़ुशीया हर तरफ़ ।
तुम क्या हो-----------
---------मधुर----4/29/15

Saturday, April 25, 2015

तुम मेरे हो

दK,



यह मै नही कहती सृष्टि का कण कण कहता है
तुम मेरे हो बस मेरे ही रहना,
मुझे जाना है उस पार
मेरी उँगली पकड़ कर उस पार ले जाना
जहाँ कोई न हो मै ओर तुम
 तुम मेरे --------------
 पतों की सरसराहट कहती है
फुलों की महक कहती है
तुम मेरे--------------
बन कर मेरी कशती का मलाह
मुझे किनारे तक पहुँचा देना
लगा कर पंख फिर आकाश मे उड़ा देना
जहाँ कोई ना हो मै ओर तुम
तुम मेरे-----------------
सूर्य की रोशनी कहती है
चंदा की चाँदनी कहती है
तुम मेरे------------------

बस एक काम और कर देना
इन प्यासी अखीयों मे सावन की 
झड़ी  बन कर बरसते रहना
तुम मेरे हो मेरे ही रहना---
मधुर 

Friday, April 24, 2015

सपनों की बात



ओढ़ कर ओढ़नी जब मै सो जाती हुँ
सुंदर सपनों मे खो जाती हुँ
परियों के देशों मे बसेरा करती हुँ हर पल को जी लेती हुँ,

उनका आना आँख मिचोली करना
फिर हवा में उड़ जाना
आकाश को छु लेती हुँ
ओढ़ कर ओढ़नी---------------
जो पा न सकुं दिन के उजालों मे
रात को सपनों मे सब पा लेती हुँ
सब शिकवे ओर गिले भी
सपनों मे मिटा लेती हुँ,
और तो और अच्छे व्यंजन
भी पेट भर खा लेती हुँ
ओढ़ कर ओढ़नी---------
खुली जब आँख हुई प्रभात
फिर से आँखे मूँद लेती हुँ
रातों के सपनों मे फिर से खो जाती हुँ
ओढ़ कर ओढ़नी ---------
सुंदर सपनो मे-------------
-------मधुर


हम सब एक है



घना सा जंगल बीच मे एक पतली सी पगडंडी 
चली जा रही हुँ अपनी ही धुन मे गुनगुनाती हुई 
पहुँचे जाती हुँ और भी घने जंगलों के बीच 
शाम का समय यहाँ और कोई नही
मेरे और बेज़ुबान बृक्षों के सिवा
जो झूम झुम कर नृत्य कर रहे थे
और फुस फसा रहे थे
पतों की सरसराहट से लगा 
कुछ कहना चाहते है
रुक जाती हुँ पल भर के लिये
उनको सुनने के लिये
लगा बह हँसे रहे हैं
मै भी हसने लगी पागलों की तरह
हसती गई जब तक एक नही हो गई
उनके संग,
तब एक सरसराहट सी हुई लगा 
किसी ने कान मे आकर कहा
हम तुम एक हैं।
हम तुम एक हैं।
------मधुर